Tuesday 9 September 2014

लघुकथा / शिक्षक दिवस

मुंगेरीलाल शहर के सबसे बड़े 'पतंगबाज़' थे. अचानक उन्हें जाने क्या सूझी कि शिक्षक दिवस के हफ़्ते भर पहले उन्होंने 'ढील' छोड़ी कि वो शहर के सभी विद्यालाओं के बच्चों को संबोधित करेंगे और सभी विद्यालय इसके लिए ज़रूरी इंतज़ाम कर लें. सभी विद्यालाओं को इसके बदले मेरी तरफ से 'दान-ज्ञान' भी दिया जायेगा. 

चूँकि मामला 'दान' का था इसलिए मन मार के सभी विद्यालयों ने ज़रूरी इंतज़ाम कर लिया. 'दान' के साथ-साथ पतंगबाज़ी का 'ज्ञान' भी मुफ़्त में मिल रहा था इसलिए ख़र्चे की कोई बात नहीं कर रहा था. नियत दिन-समय पे मुंगेरीलाल शहर के 'इनडोर स्टेडियम' पहुँचे. वहाँ सभी विद्यालयों से 'चुनिन्दा' छात्रों को 'जमा' किया गया था और बाक़ी सभी विद्यालयों में 'प्रोजेक्टर' या 'टीवी' का इंतज़ाम था. जहाँ बच्चों को सिर्फ़ 'देखना' था.

दीप जला कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया. मुंगेरीलाल ने 'ढील' छोड़ी और और 'पतंग' हवा में. एक बच्चा जिसे पतंगबाज़ी में कोई रूचि नहीं थी, वो बैठे बैठे ऊब गया तो उसने मुंगेरीलाल से कहा - 'महाशय, अब तो आपकी पतंग दिख भी नहीं रही, लगता है सातवें आसमान से भी आगे निकल गयी है. अब तो आपका पतंग भी कोई नहीं काट सकता तो मुझे मेरे कुछ प्रश्न का उत्तर दीजिये. मुझे पतंगबाज़ी में नहीं कंचे खेलने में महारत है तो मैं आपके 'पतंग कला' का उपयोग अपने कंचे खेलने में कैसे कर सकता हूँ? मुंगेरीलाल में अपना सीना फुलाकर 72 इंच का कर लिया और कहा कि - 'कंचे खेलना बुरी बात है और ये गंदे बच्चे खेला करते हैं., बच्चों को अपना लक्ष्य ऊँचा रखना चाहिए पतंग की तरह, ऊँची सोच, ऊँचा लक्ष्य' और लगे अपनी ढील लपेटने. बच्चे ने कुछ सोचते हुए कहा कि 'महाशय फिर आप मुझे 17 का पहाड़ा सुना दीजिये'. मुंगेरीलाल में बच्चे को गुस्से से घूरते हुए कहा कि 'पतंगबाज़ी के क्लास में सिर्फ़ इसी से जुडी बात होगी और कोई बात नहीं'. बच्चे ने बड़ी मासूमियत से अपने जेब में हाथ डाला और कंचे टटोलते हुए कहा - 'महाशय ! फिर शिक्षक दिवस पे आपको शिक्षकों से बात करनी चाहिए थी बच्चों से नहीं'.

शिक्षकों से बात करता तो वो मेरा इतिहास, भूगोल तो ठीक करते ही साथ में पतंग भी छीन के रख लेते. मुंगेरीलाल ये शब्द मुँह में बुदबुदाते हुए अपनी पतंग लपेटने लगे.

~
- नैय्यर / 09-09-2014